A poem by Dushyant Kumar



दुश्‍यंत कुमार मेरे प्रिय कवि रहे हैं और उनकी लगभग सभी रचनाएं मुझे बार-बार पढ़ने का मन करता है. खासकर उनकी कविता- 'मत कहो आकाश में कुहरा घना है'. आज आप भी पढि़ये -

मत कहो आकाश में कुहरा घना है- दुष्‍यंत कुमार

मत कहो, आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है ।

सूर्य हमने भी नहीं देखा सुबह से,
क्या करोगे, सूर्य का क्या देखना है ।

इस सड़क पर इस क़दर कीचड़ बिछी है,
हर किसी का पाँव घुटनों तक सना है ।

पक्ष औ' प्रतिपक्ष संसद में मुखर हैं,
बात इतनी है कि कोई पुल बना है

रक्त वर्षों से नसों में खौलता है,
आप कहते हैं क्षणिक उत्तेजना है ।

हो गई हर घाट पर पूरी व्यवस्था,
शौक से डूबे जिसे भी डूबना है ।

दोस्तों ! अब मंच पर सुविधा नहीं है,
आजकल नेपथ्य में संभावना है ।

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