क्या आप हिन्दी मीडियम से आई ए एस बनना चाहते हैं ?



Do you want to be an IAS from Hindi Medium ?

आई ए एस बनना हममें से सबका नहीं तो बहुतों का सपना होता है और हो भी क्यों ना हमारे देश की सरकारी नौकरियों में इसे सबसे प्रतिष्ठित माना जाता है। हालांकि इसे एक कठिन परीक्षा माना जाता है परंतु सकारात्मक नजरिये से और शुरू से ही ढंग से तैयारी की जाए तो इसमें सफल होना उसी तरह मुमकिन है जिस तरह किसी अन्य प्रतियोगिता में। दुनिया की सबसे उंची चोटी एवरेस्ट को माना जाता है बावजूद इसके दृढ़ विश्वास के बूते ना जाने कितने लोग उसे हर साल फतह करते हैं। उसी तरह हर साल सफल होने वाले UPSC Toppers के Interviews प्रतियोगी पत्रिकाओं, अखबारों, मीडिया में आते हैं जिनको पढ़कर हर तैयारी करने वाले Civil Service Aspirant को लगता है कि वह भी इन टॉपर्स की तरह बन सकता है और ये सही भी है क्यों कि टॉपर्स हम सबके बीच से ही आते हैं। बस उन्हें दूसरों से जो अलग करता है वो है पूरी योजना और समर्पण के साथ तैयारी।


हिंदी एक ऐसा माध्यम है जिसमें टॉपर्स की संख्या भले अधिक ना हो पर जो इस माध्यम में टॉप करते हैं उनमें एक बात जरूर होती है कि वो अपने हिंदी मीडियम से होने के कारण कभी हीनभावना नहीं महसूस करते जबकि हिन्दी से यूपीएससी परीक्षा देने वालों का बहुत बड़ा वर्ग कहीं ना कहीं खुद को Enlish Medium Aspirants की तुलना में कमतर समझता है और यहीं असफलता का बीजारोपण उनके मन में हो जाता है। ऐसा नहीं है कि हिन्दी माध्यम होना इस परीक्षा में आपके सफल होने पर कोई प्रभाव रखता है केवल हमारा सफलता के प्रति संदेह ही हमें कमजोर कर देता है। हालांकि केवल हिन्दी ही नहीं अन्य बहुत सी भारतीय भाषाओं में भी इस परीक्षा को देने वालों और सफल होने वालों की एक बड़ी संख्या है। प्रारंभिक परीक्षा के पश्चात मुख्य परीक्षा और साक्षात्कार में मायने रखता है आपका ज्ञान और विचारों को व्यक्त करने की आपकी क्षमता और जाहिर है हिन्दी मीडियम से पढ़ने वाले भी ये क्षमताएं अपने परिश्रम द्वारा बखूबी अर्जित कर सकते हैं। और यदि हिन्दी आपकी मातृभाषा रही है और आप उसमें सुविधाजनक तरीके से अपने विचारों को रख सकते हैं तो आपको वही माध्यम चुनना चाहिए। अंग्रेजी माध्यम में भी वही प्रतिभागी सफल होते हैं जो अंग्रेजी पृष्ठभूमि से ताल्लुक रखते हैं और बहुत से अंग्रेजी मीडियम वाले छात्र इसमें इसलिए असफल होते हैं कि वे अंग्रेजी मीडियम से पढ़े तो होते हैं पर उनकी अभिव्यक्ति और लेखन क्षमता में वो बात नहीं होती या फिर वे दूसरों की देखा देखी इस माध्यम को चुनकर परीक्षा देते हैं। केवल अंग्रेजी आपको इसमें सफलता नहीं दिला सकती पर यदि विषयों पर आपकी जबरदस्त पकड़ है और लेखन के साथ ही अभिव्यक्ति में भी आप खुद को कंफर्टेबल समझते हैं तो माध्यम कोई मायने नहीं रखता। बेधड़क आप किसी भी माध्यम से परीक्षा दीजिए।

हां एक बात और कि Hindi medium से तैयारी के साथ आपको Books और Study Material का चुनाव सावधानी से करना होगा। अच्छी गुणवत्ता की किताबें और नोट्स ही आपको सफल बनाने में मदद करेंगे क्योंकि हिन्दी में सामग्री की तो भरमार है, अनगिनत कोचिंग और प्रतियोगी पत्रिकाएं हैं पर उनमें से ज्यादातर का स्तर बहुत खराब होता है। अंग्रेजी में अच्छी गुणवत्तापूर्ण कोर्स मैटीरियल जहां ज्यादा प्रतिशत में है वहीं हिंदी में कम। इसलिए केवल अच्छी किताबें और मैगजीन्स ही चुनें।

अगले भाग  में हम चर्चा करेंगे कि इस माध्यम से परीक्षा की तैयारी के लिए कौन सी किताबें, पत्रिकाएं, अखबार आदि पढ़े जाएं ताकि सफलता सुनिश्चत हो सके।
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चिंता को हराने का सबसे आसान फॉर्मूला



Hindi Review of Dale Carnegie book 'How to stop worrying and start living'

 ये तो हम सभी जानते हैं कि चिंता ऐसी बीमारी है जो एक बार लग जाये तो आसानी से नहीं छूटती और ये भी एक सच है कि दुनिया में यदि सबसे बड़ी कोई बीमारी है तो वो यही है। शरीर की बीमारियों को तो हम दवाओं से दूर कर सकते हैं पर इसके लिए कोई दवा भी काम नही आती। ना तो ठीक से हम खुद समझ पाते हैं कि असल में समस्‍या क्‍या है और ना ही किसी और को अपने मन की बात समझा पाते हैं। बस हर समय अंदर ही अंदर इससे लड़ते रहने और कोई रास्‍ता ना समझ आने से हमारी हालत उस ड्राइवर जैसी हो जाती है जो ना तो गाड़ी को कंट्रोल में रख पा रहा है ना ये जानता है कि उसको जाना कहां है और किस रास्‍ते जाए। ये समस्‍या इस प्रकार की होती हैं कि ना तो हम खुद कुछ कर पाते हैं ना ही हमारे आसपास के लोग हमारी मदद कर पाते हैं क्‍योंकि वे खुद नहीं समझ पाते कि समस्‍या की जड़ कहां है और उससे निपटना कैसे है। ऐसे में ज्‍यादातर लोग चिंता करने वाले को उसके हाल पे छोड़ देते हैं और समस्‍या अक्‍सर इतनी बढ़ जाती है कि डिप्रेशन या अवसाद की स्थिति आने के अलावा लोग आत्‍महत्‍या जैसे बेहद नकारात्‍मक विचारों तक में डूब जाते हैं।




हालात चाहे जितने भी भयानक और बुरे हों पर उन्‍हें सुधारने की शुरूआत कभी भी किसी भी स्‍टेज पर की जा सकती है। अक्‍सर ऐसे लोग बेहद नाउम्‍मीद हो जाते हैं पर जब चिंता और Negativity के जाल से निकलने के लिए हम थोड़ी थोड़ी कोशिश करना शुरू कर देते हैं बस वहीं से चीजें आसान होना शुरू हो जाती हैं और इस कोशिश का अर्थ कुछ करना नहीं है केवल ये समझना है कि दुनिया में आप अकेले इंसान नहीं हैं जो इतनी सारी समस्‍याओं से घिरे हुए हैं, दुनिया में अनगिनत लोगों ने उनसे भी बुरे दिन देखे इसके बावजूद भी वे वो सब कर पाये जिसकी वो उम्‍मीद तक खो चुके थे।

'चिंता छोड़ो सुख से जियो' ( Chinta Chodo Sukh Se Jiyo) के लेखक डेल कारनेगी की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। जहां उन्‍होंने शुरुआत में अपने बारे में बात की है कि वे अपने शहर न्‍यूयार्क के सबसे दुखी लोगों में से एक थे। वे अपने काम से नफरत करते थे और हर दिन चिंता, निराशा, सिरदर्द, कड़वाहट में जीते थे। उनके खुशनुमा सपने बुरे सपनों में बदल गये थे। तब उन्‍होंने इसे बदलने का निर्णय लिया और अपनी जिंदगी को खुशहाल और सुखद बनाने के लिए किये गये प्रयासों के दौरान उन्‍होंने ये किताब लिखी। उन्‍होंने इस किताब की प्रस्‍तावना में लिखा है : ' चिंता मानव-जाति के सामने मौजूद सबसे बड़ी समस्‍याओं में से एक है, इसलिए आप ये सोचेंगे ना कि दुनिया के हर हाई स्‍कूल और कॉलेज में ये कोर्स चलाना चाहिये कि - चिंता को कैसे दूर किया जाए ? मगर दुनिया के किसी भी कॉलेज में इस विषय पर कोई कोर्स चलता हो तो मैंने उस कॉलेज का नाम नहीं सुना।'

डेल कारनेगी के शब्‍दों में - ' आपने इस पुस्‍तक को ये जानने के लिए नहीं उठाया कि इसे कैसे लिखा गया। आपको एक्‍शन की तलाश है। कृपया इस पुस्‍तक के भाग 1 और 2 को पढ़ें और अगर उस समय तक आपको ये ना लगे कि चिंता छोड़ने और सुख से जीने के लिए आपमें नयी शक्ति और प्रेरणा जाग गयी है - तो इस किताब को उठाकर दूर फेंक दें। ये आपके काम की नहीं है।'

इस पुस्‍तक को पढ़ने से चिंता छोड़ने और सुख से जीने की आपकी क्षमता यूकेलिप्‍टस के पेड़ की तरह बहुत तेजी से विकसित होगी और बढ़ेगी। ये एक प्रैक्टिकल वर्कबुक है चिंता को जीतने और एक खुशहाल जिंदगी के लिए। इसकी विषय सूची और अध्‍यायों के नाम  पढ़ने से ही समझ में आ जाता है कि असल में जो हम खोज रहे थे वो सब लेखक ने अपने शब्‍दों में बयां कर दिया है। कुछ बेहद असरकारक फॉर्मूले हैं जो इस किताब आठ खंडों में दिये गये हैं। मेरे ख्‍याल में इस किताब को पढ़ने के बाद आप यही महसूस करेंगे कि आपकी चिंता या समस्‍या जिसको आप इतना बड़ा मान बैठे हैं आप उनसे भी बड़ी चिंताओं पर विजय पा सकते हैं। ये किताब एक बार पढ़े जाने के लिए नहीं है, जब भी आपको जरूरत हो, जब आप निराशा में घिरे हों तो हर बार ये आपकी मदद करती है। ऐसा कभी नहीं होता कि गहरे अवसाद या निराशा से निकलने के बाद हम हमेशा पॉजिटिव रहें Negativity हमें अक्‍सर घेर लेती है और जैसे मौसम बदलता है वैसे ही हमारा मूड भी हमेशा सकारात्‍मक नहीं रहता। इसलिए खुद को दुबारा चार्ज और Motivate करने के लिए हमें कुछ तो चाहिए होता है और ये किताब ये काम बहुत अच्‍छे से करती है, खासकर जब निराशा बहुत ज्‍यादा और कुछ भी समझ ना आये ऐसे समय में ये दमदार तरीके से हमें Life के Positive Track पे फिर से ले आती है।

इसके सबसे अंतिम भाग में उन लोगों की कहानियां दी गई हैं जो निराशा और नाउम्‍मीद की गहरी खाई से बच निकलने में सफल हुए। इनको पढ़ते हुए लगता है कि हम कम से कम इनसे तो बेहतर स्थिति में ही हैं। हमारा सब कुछ चौपट हो गया हो चाहे वो स्‍वास्‍थ्‍य हो, नौकरी, जिंदगी भर की मेहनत से खड़ा किया गया बिजनेस हो या कुछ भी हम सब कुछ दुबारा से खड़ा कर सकते हैं। जब हम अपने से भी बदतर स्थिति वाले लोगों को खड़ा होते देखते हैं तब हमें लगता है इस दुनिया में हम अकेले नहीं जिसके साथ ऐसा हुआ और हमसे भी बदतर हालत वाले लोग हैं और सबसे बड़ी बात कि दुबारा खड़े होने की इस जद्दोजहद में हम सीखते हैं कि खुश रहने के लिए हमें बहुत पैसे और सुविधाओं की जरूरत नहीं और जब हम खुश रहना सीख लेते हैं और जिंदगी के प्रति हमारा रवैया सकारात्‍मक हो जाता  है तो हम वो सब कर सकते हैं जो करना चाहते हैं। डेल कारनेगी Personality Development के क्षेत्र में सबसे बिकने वाला नाम हैं उनकी किताब How to win Friends and Infulence People जो हिन्‍दी में लोक व्‍यवहार के नाम से बिकती है 1935 से लेकर अब तक Bestseller Books की सूची में रही है साथ ही हाउ टु स्‍टॉप वॉरीइंग एंड स्‍टार्ट लिविंग भी।  उनके बाद ना जाने कितने लेखकों ने इस विषय पर लिखा होगा पर आज भी वे हीरो हैं और उनकी ये किताब Happiness and Tension Free Life जीने के सबसे बेस्‍ट तरीके सिखाती है।


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मुंशी प्रेमचंद की कहानियां सुनें



Hindi Audiobooks of Munshi Premchand Short Stories for Children

आज भी हिन्‍दी साहित्‍य में मुंशी प्रेमचंद सर्वाधिक पढ़े जाने वाले लेखकों में से हैं। जब भी किसी बुक स्‍टॉल या ऑनलाइन स्‍टोर पर उनकी कोई किताब नजर आ जाती है तो फिर से उसे पढ़ने का मन करता है। हिन्‍दी में प्रेमचंद जैसा शायद ही कोई लेखक होगा जिसकी लो‍कप्रियता किसी विशेष उम्र वर्ग की मोहताज नहीं। बच्‍चे भी उनकी कहानियॉं उतने ही शौक से पढ़ते हैं और बड़ों में भी उनके उपन्‍यास और कहानियां खासतौर पर लोकप्रिय हैं। उनकी भाषा में, किरदारों में जो सादापन है वही उनकी रचनाओं की विशेषता है। अपने लेखन के माध्‍यम से उन्‍होंने आम जनता के मन में जो पैठ बनाई वो आजादी के पहले के समय से लेकर आज 21वीं सदी तक कायम है। 



बच्‍चों के लिए हिन्‍दी भाषा को जानने, समझने और सीखने का माध्‍यम तो हैं ही उनकी रचनाएं इसके अलावा शिक्षाप्रद होना भी उनकी अपनी विशेषता है- चाहे ईद हो या पंच परमेश्‍वर, बूढ़ी काकी हो या बड़ भाईसाहब। आजकल बाल-साहित्‍य भले कम लिखा जा रहा हो पर आज भी उनकी कहानियां इंसानी रिश्‍तों की समझ और संवेदनाओं के बीज बच्‍चों के मन में बड़ी सहजता से बो देती हैं। अंग्रेजी शिक्षा और खासतौर से व्‍यावसायिक शिक्षा के हावी होने के इस दौर में बच्‍चों के लिए अपनी भाषा और विरासत से जोड़े रखने का माध्‍यम हैं ये रचनाएं। तकनीक के इस उन्‍नत दौर में किताबों के अलावा और भी माध्‍यम शिक्षा और मनोरंजन के लिए प्रयोग किये जा रहे हैं ऑडियोबुक्‍स भी एक ऐसा ही माध्‍यम है। खासकर बच्‍चों को ये खासतौर पर पसंद आयेगा और इस बहाने वे अपनी भाषा अपने साहित्‍य से नजदीकी रिश्‍ता बना सकेंगे।

यहॉं पर हम मुंशी प्रेमचंद की कुछ कहानियों के ऑडियो लिंक दे रहे हैं जिन्‍हें या तो आप ऑनलाइन सुन सकते हैं या उन्‍हें सेव करके ऑनलाइन सुन सकते हैं और दूसरों से शेयर भी कर सकते हैं-

मंदिर

गुल्‍ली डंडा

बड़े भाईसाहब

ठाकुर का कुआं
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ज्‍योतिष सीखना अब है आसान



Best Book in Hindi to Learn Astrology and Palmistry



ज्‍योतिष और हस्‍तरेखा विज्ञान ऐसे विषय हैं जिन्‍हें जानने वाले व्‍यक्ति के प्रति आम जनता का सहज आकर्षण रहता है चाहे आप इसे शौकिया तौर पर अपनायें या व्‍यवसायिक रूप में। आजकल जहां इन विषयों पर अधिकार का दावा करने वाले आपकी हर समस्‍या के समाधान का दावा करते हैं वही जनता का एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जिसे बेवकूफ बनाकर पैसे ऐंठने वाले ढोंगियों की संख्‍या भी कम नहीं है। जैसे चिकित्‍सा क्षेत्र की थोड़ी बहुत जानकारी लेकर बहुत से झोलाछाप डॉक्‍टर अपनी दुकान खोले बैठे हैं वैसे ही यहां भी ऐसे झोलाछापों की कमी नहीं है। फिर भी चूंकि आजकल इसका बाजार बहुत बड़ा है और इस भीड़ में कौन विशेषज्ञ है और कौन नकली ये पता करना भी आसान नहीं खासकर टीवी और इंटरनेट के दौर में इसलिए सभी की दुकान थोड़ी हो या बहुत चल ही रही है। इस प्रोफेशन में ज्ञान ही पूंजी है इसलिए जो धैर्यपूर्वक निरंतर अध्‍ययन के साथ-साथ इस काम में लगे हैं वे ही अधिक तरक्‍की कर पाते हैं तो किसी भी पेशे की तरह अपने ज्ञान को इस पेशे में भी परिष्‍कृत करते रहना चाहिए। यदि केवल बिजनेस के नजरिये से ही इसे देखा जाए तो भी ये एक ऐसी इंटस्‍ट्री है जहां डिमांड बहुत ज्‍यादा है तो इसमें रुचि रखने वाले इसके बारे में सीखकर और समय के साथ अपनी जानकारी बढ़ाकर इसे एक Full Time या Part Time Self Employment Business के तौर पर इसे शुरू कर सकते हैं। 

सवाल ये है कि भविष्‍यफल बताने, कुंडली बनाने, विवाह कुंडलीमिलान जैसे विषयों को सीखने का सही तरीका क्‍या है। बहुत सारे विश्‍वविद्यालय भी आजकल एस्‍ट्रोलॉजी में कोर्स चला रहे हैं। हालांकि इस व्‍यवसाय को करने के लिए किसी डिग्री या योग्‍यता की जरूरत नहीं है ना ही इसके बारे में सरकार के कोई नियम आदि ही हैं। बहुत सारे लोग हैं जो इसे सीखना तो चाहते हैं पर समय या संसाधनों की कमी के कारण किसी पाठ्यक्रम आदि में दाखिला नहीं ले सकते ना ही वे सब जगह उपलब्‍ध हैं। उनके लिए विकल्‍प है कि उन्‍हें इस विषय पर उपलब्‍ध किताबों का अध्‍ययन करना चाहिए। पर प्रश्‍न यह कि कि एकदम शुरूआती स्‍तर पर इसके अध्‍ययन के लिए क्‍या पढ़ना चाहिए वरना यह विषय इतना जटिल है कि इस विषय पर लिखी किताबों और उनकी भाषा को पढ़कर कुछ पल्‍ले पड़ता नहीं व नये सीखने वाले को इस विषय से ही अरुचि हो जाती है और वह पढ़ना ही छोड़ देता है।

अभी अभी एक किताब हाथ में आई जो इस समस्‍या का समाधान करती है। ये एक बेसिक बुक है इस विषय को सिखाने वाली ठीक उस तरह जैसे हम अंग्रेजी सीखने के लिए एबीसीडी से शुरूआत करें। इस पुस्‍तक का नाम है – ‘आओ ज्‍योतिष सीखें – ज्‍योतिष सीखने की प्रथम पुस्‍तक’ नाम से ही स्‍पष्‍ट हो रहा है कि ये किस उद्देश्‍य को ध्‍यान में रखकर लिखी गई है। इसके लेखक हैं तिलक चन्‍द ‘तिलक’ जो काफी समय से शौकिया तौर पर इस विषय के गहन अध्‍ययन में और इससे संबंधित लेखन में लगे हुए हैं।

ये पुस्‍तक यह कतई दावा नहीं करती कि इसे पढ़कर आप को ज्‍योतिष जैसे गूढ़ विषय पर अधिकार प्राप्‍त हो जाएगा। हां आप खुद को ज्‍योतिषी बताकर दुकान चलाने वाले किसी ऐरे गैरे व्‍यक्ति की तुलना में खुद को बेहतर स्थिति में पायेंगे और केवल 5 मिनट में कुंडली बनाने की योग्‍यता आप प्राप्‍त कर लेंगे। इसलिए इस पुस्‍तक को ज्‍योतिषी बनने के लिए पहली सीढ़ी के तौर पर देखें। यदि आप पहली सीढ़ी ठीक से चढ़ लेंगे तो आगे की चढ़ाई आसान हो जाएगी। इस पुस्‍तक की विशेषता है इसकी सरल भाषा और विषय को रुचिकर ढंग से पेश करने की शैली जो किसी के भी समझ में आसानी से आ सकती है । इस पुस्‍तक में आप कुछ बेहद शुरूआाती स्‍तर के प्रश्‍नों का समाधान पा सकते हैं जिनमें प्रमुख हैं- जन्‍म कुंडली क्‍या है और इसका क्‍या महत्‍व है, इसके बारह भाव एवं प्रकार, अपनी जन्‍म राशि कैसे जानें और इसे बनाने की विधि, ग्रहों की स्थिति जन्‍म नक्षत्र से राशिफल जानना और भविष्‍यफल बताने की विधि। यदि आप इन प्रश्‍नों में से किसी का भी उत्‍तर जानना चाहते हैं तो आपके लिए ये किताब पढ़ने लायक है और सबसे बड़ी बात कि इसे पढ़कर आपकी इस विषय में दिलचस्‍पी और बढ़ जायेगी।
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स्‍वामी रामसुखदास महाराज के अमृत वचन



Swami Ramsukhdas Ji Maharaj ke Pravachan aur Sahitya

मित्रों बचपन से ही हममें से ज्‍यादातर ने अपने घर में बुजुर्गों को गीताप्रेस गोरखपुर का साहित्‍य पढ़ते देखा है। चाहे पूजाघर में रखी रामायण, भगवदगीता या रामचरितमानस और अन्‍य पुस्‍तकें हों या मासिक पत्रिका कल्‍याण और इनके साथ ही बच्‍चों के लिए उपयोगी साहित्‍य भी गीताप्रेस उपलब्‍ध करवाता था। उन पुस्‍तकों के लेखक के रूप में हम स्‍वामी रामसुखदासजी के नाम से परिचित हैं। 

गीता पर लिखा गया उनका भाष्‍य 'साधक-संजीवनी' उनकी सबसे ज्‍यादा बिकने वाली किताबों में से है। विद्वानों के अनुसार आधुनिक समय में श्रीमदभगवद्गीता की सबसे सरल और प्रामाणिक व्‍याख्‍या इस पुस्‍तक में है। इसके अलावा भी उन्‍होंने आमजन के मार्गदर्शन और हिन्‍दू दर्शन की व्‍याख्‍या के लिए बहुत सी रचनाएं लिखीं। इनकी रचनाओं में उन्‍होंने एक बात पर विशेष तौर पर कही है कि भगवदप्राप्ति सबके लिए बहुत ही सरल और सहज है और इसके लिए किसी विशेष या कठिन मार्ग पर चलने की आवश्‍यकता नहीं है। 




यहॉं उनकी अमृतवाणी से निकले कुछ बिन्‍दु प्रस्‍तुत हैं :-


**भगवान याद करने मात्र से प्रसन्‍न हो जाते हैं, इतना सस्‍ता कोई नहीं। 

**भगवान के किसी मनचाहे रूप को मान लो और भगवान के मनचाहे आप बन जाओ। 

**आप भगवान के बिना नहीं रह सकें तो भगवान की ताकत नहीं कि आपके बिना रह जायें।

**ज्ञानी भगवान को कुछ नहीं दे सकता पर भक्‍त भगवान को प्रेम देता है। भगवान प्रेम के भूखे हैं ज्ञान के नहीं।

**मनुष्‍य खुद अपने कल्‍याण में लग जाये तो इसमें धर्म, ग्रंथ, महात्‍मा, संसार, भगवान सब सहायता करते हैं। 
 
**भगवान किसी को भी अपने से नीचा नहीं बनाते जो भगवान की गरज करता है उसे भगवान अपने से ऊंचा बनाते हैं।

**भगवान को याद करना ही उनकी सेवा करना है, पत्र-पुष्‍प-फल की भी आवश्‍यकता नहीं। द्रोपदी ने केवल याद किया था।

**जैसे मां बालक का सब काम राजी होकर करती है, ऐसे ही जो भगवान की शरण हो जाते हैं उनका सब काम भगवान करते हैं। 

**कलियुग उनके लिए खराब है जो भगवान का भजन-स्‍मरण नहीं करते, भगवदभजन करने वालों के लिए तो कलियुग भी अच्‍छा है।


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